अजीब दौर है, जीने की आस ग़ायब है

अजीब दौर है, जीने की आस ग़ायब है चमक-दमक तो है, लेकिन उजास ग़ायब है   हरे दरख़्त वो शहतूत और जामुन के अभी भी गाँव में हैं, पर मिठास ग़ायब है   न जाने कौन सी रुत जी रहा है मन मेरा नदी निकट है मेरे और प्यास ग़ायब है   शजर ये राजपथों … Continue reading अजीब दौर है, जीने की आस ग़ायब है